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रामचरित मानस


भीलराज गुह - अयोध्याकाण्ड (13)


गंगा के इस प्रदेश पर भीलों का अधिकार था और उनके राजा का नाम गुह था। एक लोकप्रिय एवं सशक्त शासक होने के साथ ही साथ गुह राम का भक्त भी था। यह ज्ञात होने पर कि राम अपने लघु भ्राता लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ उसके क्षेत्र में आये हुये हैं, वह अपने मन्त्रियों तथा परिजनों के साथ उनके स्वागत के लिये आ पहुँचा। भीलराज गुह को देखकर राम स्वयं आगे बढ़े और उनसे गले मिले। वक्कल धारण किये हुये राम, सीता और लक्ष्मण को देख कर गुह को अत्यन्त क्षोभ हुआ। उसने विनयपूर्ण तथा आर्त स्वर में कहा, "हे रामचन्द्र! इस प्रदेश को आप अपना ही प्रदेश समझें। आप यहाँ का अधिपति बनकर यहाँ का शासन सँभाल लें। आपके समान समदर्शी एवं न्यायवेत्ता शासक पाकर यह प्रदेश धन्य हो जायेगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह सम्पूर्ण भूमि आपकी ही है और हम सब आपके अनन्य सेवक हैं।"


इतना कहकर गुहराज ने अपने साथ लाई हुई सामग्री को राम के समक्ष रख दिया और बोला, "हे, स्वामी! ये भक्ष्य, पेय, लेह्य तथा स्वादिष्ट फल आपकी सेवा में प्रस्तुत है। आप कृपा करके इन्हें स्वीकार करें। आप लोगों के विश्राम के लिये व्यवस्था कर दी गई है। अश्वों के लिये दाना-चारा भी तैयार है।"


गुह की प्रेममय वचनों को सुनकर राम बोले, "हे निषादराज! आप इस प्रदेश के राजा हैं फिर भी आप मेरे स्वागत के लिये पैदल चलकर आये हैं। मैं आपकी जितनी प्रशंसा करूँ, कम है। आपने दर्शन देकर हम लोगों को कृतार्थ कर दिया है।"


इस प्रकार निषादराज की प्रशंसा करते हुये राम उन्हें प्रेमपूर्वक अपने पास बिठा लिया और मधुर वाणी में कहने लगे, "भीलराज! आपको सानन्द और सकुशल देखकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। आपके द्वारा लाये गये इन उत्तमोत्तम पदार्थ के लिये मैं आपका अत्यंन्त आभारी हूँ। किन्तु बन्धु! मुझे खेद है कि मैं इन्हें स्वीकार नहीं कर सकता। ये सारे पदार्थ राजा-महाराजाओं के खाने योग्य हैं किन्तु अब हम तपस्वी हो गये हैं और हमारा भोजन तो केवल कन्द-मूल-फल है। अतः हम इसे ग्रहण नहीं कर सकते। हाँ, अश्वों के लिये आप जो दाना-चारा लाये हैं उन्हें स्वीकार करके मुझे बहुत प्रसन्नता होगी क्योंकि ये मेरे पिताजी के प्रिय अश्व हैं, जिनकी सदैव विशेष देख-भाल की जाती है।"

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1 Comments

shweta soni

31-Jul-2022 07:20 PM

Behtarin rachana

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